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उत्तराखंड के चार धामों की यात्रा आस्था की जीत, अध्यात्म से साक्षात्कार एवं प्रकृति के अदभुत रूप का दर्शन है।
अध्यात्म और तीर्थ के लिए हर मौसम और महीना उपयुक्त्त होता है, यही संदेश देती है सर्दियों में भी चारधाम यात्रा। उत्तराखंड में घोर सर्दी के कारण यहां के चार धाम केदारनाथ, बदरीनाथ, गंगोत्री एवं यमुनोत्री पूरी तरह बर्फ से ढक जाते हैं, मगर आस्था की ज्योति यूँ ही जलती रहती है। अक्टूबर उत्तरार्द्ध से अप्रैल पूर्वाद्ध तक अर्थात इस राज्य में घोर सर्दी के तकरीबन छह महीनों के दौरान यहां के चारधाम-केदारनाथ, बदरीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री क्रमश उखीमठ, पांडुकेश्वर (जोशीमठ), मुखवा और खरसाली ही चार धाम बन जाते हैं,
क्योंकि उपरोक्त मंदिरों के प्रतीक एवं देवी-देवताओं की प्रतिमाएं इन्हीं स्थानों के पवित्र मंदिरों में स्थापित कर दी जाती हैं। यही वजह है की गत वर्ष से राज्य ने शीतकालीन चार धाम दर्शन को प्रोत्साहित करने का कार्य आरंभ क्र दिया है। सर्दियों में पर्यटन की संभावनाएं और अधिक बढ़ जाती है और उसकी एक बड़ी वजह बर्फबारी और बिल्कुल धवल पर्वत श्रृंखलाओं की देखने की ललक होती है। वहीं सर्दियों में खूब सारी खेलकूद गतिविधियों में शामिल हुआ जा सकता है। सर्दियों में प्राकृतिक आपदाएं- जैसे बाढ़ और बादल का फटना आदि भी नहीं होतीं। उत्तराखंड इन दिनों अपने मेहमानों की स्वागत के लिए पूरी तरह से तैयार रहता है। अनेक प्रकार के मेले और त्योहार, जैसे-कौरव पूजा, पांडव नृत्य आदि इन दिनों के आकर्षण होते हैं। इसके अलावा, मुख्य तीर्थधाम के आसपास अलावा आदि की व्यवस्था भी की जा रही है। राज्य ने मुखबा अर्थात गंगोत्री से चारधाम यात्रा का शुभारंभ किया था।
11-12 दिनों की यात्रा
हरिद्वार से लेकर जोशीमठ तक की यह शीतकालीन चारधाम यात्रा कुल 11-12 दिनों में पूरी की जा सकती है। इसी अनुसार इसके पैकेज तैयार किए जाते है। पहला दिन हिरद्वार, दूसरा दिन हरिद्वार से बरकोट, तीसरे दिन बरकोट से खारसली फिर बरकोट, चौथे दिन बरकोट से हरसिल, पांचवें दिन हरसिल से मुखबा फिर उत्तरकाशी, छठे दिन उत्तरकाशी से गुप्तकाशी, सातवें दिन गुप्तकाशी से उखीमठ, आठवें दिन गुप्तकाशी से चैपता होते हुए जोशीमठ, नोंवें दिन जोशीमठ से पांडुकेश्वर फिर वापस जोशीमठ, दसवें दिन जोशीमठ से ऋषिकेश, ग्यारहवें दिन ऋषिकेश से वापसी अपने-अपने घरों की ओर।
यात्रा की शुरुआत
उत्तराखंड के चारधाम की यात्रा की शुरुआत हरिद्वार से होती है, हर यानी शिव जी ओर उनका द्वार हरद्वार। कई नामों से सुशोभित हरिद्वार की हर की पौड़ी में शाम को गंगा की महाआरती की दृश्य अदभुत होता है। यहां स्थित मनसा देवी मंदिर की बड़ी मान्यता है। चंडी देवी, माया देवी, भारत माता एवं भीम मंदिर में आस्थावान पर्यटक पूजा-अर्चना एवं दर्शन के लिए आते हैं। साथ ही, सप्त ऋषि, परमार्थ, साधु-चेला आश्रम व मंदिर तथा शांति कुंज भी दर्शनीय है। अगले दिन हम प्रातः हरिद्वार से देहरादून-मसूरी होते हुए बरकोट पहुंचे। देहरादून-मसूरी की सीमा पर एक मशहूर शिव मंदिर है। इस मंदिर की एक खास बात मुझे बहुत भाई कि मंदिर में कहीं कोई दान-पात्र नहीं है, बजाय इसके यहां लिखा है कृपया कहीं कोई चढ़ावा न दें, ईशवर ही सबको देने वाला है। इस मंदिर में यात्री अवश्य सिर नवाते हैं और मुफ्त में प्रसाद एवं चाय ग्रहण करते हैं। देवभूमि उत्तराखंड में चारधाम यात्रा का मार्ग इतना खूबसूरत एवं भव्य है कि मन रोमांचित हो उठता है। प्रातः हम बरकोट पहुंच गए। तीसरे दिन सुरम्य घाटियां, पर्वत एवं चट्टियों अर्थात विश्राम स्थल से गुजरते हुए खरसाली पहुंचे। खरसाली उत्तरकाशी में स्थित एक छोटा-सा गावं है, जहां यमुनोत्री देवी कि गद्दी है, यहीं पर भारत का सबसे प्राचीन शनि मंदिर है और सर्दियों में यहीं पर देवी यमुनोत्री की प्रतिमाएं रखी जाती हैं। इस प्रकार इस स्थान का महत्व कई गुना बढ़ जाता है। खरसाली से पुनः बरकोट की और दिव्य अनुभव लिए नैसर्गिक सौन्दर्य का आंनद लेते हुए। चौथे दिन बरकोट से हरसिल में रात्रि विश्राम कई बाद पांचवें दिन पुनः एक छोटे से गाँव मुखबा की ओर। भागीरथी के तट पर स्थित हरसिल बेहद आकर्षक है, इस शहर में स्थित मुखबा गाँव में माँ गंगोत्री की गद्दी के कारण मशहूर है, क्योंकि सर्दियों में गंगोत्री क्षेत्र बर्फ से ढक जाता है। गंगोत्री पूजन के बाद यात्रा आगे बढ़ती है उत्तरकाशी की ओर। छठे दिन उत्तरकाशी में विश्वनाथ मंदिर एवं परशुराम मंदिर दर्शनीय है उत्तरकाशी से गुप्तकाशी रास्ता उतना ही मनोरम है, मन्दाकिनी के किनारे चलते हुए देवदार ओर चीड़ के वनों का नजारा वाकई अविस्मरणीय बन जाता है। देर शाम हम गुप्तकाशी पहुंचे। रात्रि विश्राम के बाद अगले दिन अर्थात सातवें दिन बद्री विशाल होते हुए उखीमठ। उखीमठ में स्थित ओंकारेश्वर मंदिर का विशेष महत्व है। यह श्री केदारनाथ जी एवं मदमहेश्वर का गद्दीस्थल है। सर्दियों में जब केदरनाथ का पट बंद हो जाता है, तो इसी मंदिर में उनकी प्रतिमाएं स्थापित क्र दी जाती हैं। केदारनाथ के दर्शन के बाद वापस गुप्तकाशी में रात्रि विश्राम। अगले यानी आठवें दिन चैपता होते हुए जोशीमठ की ओर।
चैपता का सौंदर्य
चैपता का सौंदर्य अद्धितीय है। इसे भारत का स्विट्जरलैंड भी कहा जाता है। मखमली कालीन से बुग्याल, पहाड़ी काक, मोहक झरने सभी यहां की खूबसूरती बयान करते हैं, यहां से 9 किलोमीटर दूर तुंगनाथ मंदिर एवं चंद्रशिला है और रास्ते में कस्तूरी मृग प्रजनन केंद्र भी है। मैं भाग्यशाली रहा कि मुझे रास्ते में कस्तूरी मृग दिख गए। जोशीमठ पहुंचते-पहुंचते शाम हो जाती है। नोवें दिन जोशीमठ में ही स्थित पांडुकेश्वर कि यात्रा, जहां वासुदेव मंदिर में बदरीनाथ जी कि गद्दी है। जोशीमठ एक लोकप्रिय स्थान है, क्योंकि यहीं से ओली, फूलों कि घाटी, हेमकुंड साहिब, बदरीनाथ एवं नीती घाटी के लिए रास्ता जाता हैं, ओली स्कीइंग के लिए मशहूर है। जोशीमठ में जाकर शीत ऋतू कि चार धाम यात्रा पूरी होती है।
जोशीमठ में नरसिंह भगवान का मंदिर है, यहां भगवान नरसिंह का शांत रूप है। यह मंदिर आदि शंकराचार्य का गद्दी स्थल भी है और सबसे आश्चर्यजनक ढाई हजार पुरानी नवदुर्गे कि प्रतिमाएं हैं। जोशीमठ में स्थित आठ मीटर के घेरे में फैले कल्पवृक्ष कि बड़ी मान्यता है। कल्पवृक्ष के तले भगवान शंकर का मंदिर है। यहीं पर रहकर शंकराचार्य ने तीन साल तक तपस्या की थी। दसवें दिन जोशीमठ से ऋषिकेश, यहां पवित्र गंगा, लक्षमण झूला, कई मंदिरों के दर्शन के बाद ग्यारहवें दिन वापस अपने घर की ओर। इतना सुंदर, आध्यात्मिक, जीने लायक और उत्कृष्ट भारत का अहसास मुझे इस यात्रा के दौरन ही हुआ, सत्यम, शिवम, सुंदरम, का अहसास।