कैलास मानसरोवर जहां बस्तें है शिव

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Kailash-Mansarovar

 भगवान शिव के परम धाम कैलास मानसरोवर पर प्रकाश और ध्वनि तरंगों का अद्धभुत समागम होता है। तभी तो ओम नम: शिवाय का उद्धघोष करते तीर्थ-यात्रियों का यहां होता है स्वयं से साक्षात्कार। इस यात्रा पर विशेष…

अद्धभुत, अलौकिक, अकल्पनीय, अति सुंदर। चार धामों की आस्था का केंद्र कैलास मानसरोवर उच्च हिमालयी क्षेत्र का वह हिस्सा है, जहां पहुंचने के बाद ये शब्द सुनने को मिलते है। कैलास यात्रा पर जाने वाले श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक ऊर्जा के साथ ही असीम शांति का अनुभव होता है। भगवान शिव की तपस्थली कैलास मानसरोवर का स्वयंभू भी कहा गया है। इस अलौकिक जगह पर प्रकाश तरंगों और ध्वनि तरंगों का अद्भुत समागम होता है, जो प्रतिध्वनित होता रहता है। इस पावन स्थल को भारतीय सभ्यता की झलक दिखती है। कैलास पर्वत के दक्षिण भाग को नीलम, पूर्व भाग को क्रिस्टल, पश्चिम को रूबी और उत्तर को स्वर्ण रूप में माना जाता है।
धार्मिक ग्रंथों में इसे कुबेर की नगरी भी कहा गया है। मान्यता है कि महाविष्णु के करकमलों से निकलकर गंगा कैलास पर्वत की चोटी पर गिरती है, जहां प्रभु शिव उन्हें पानी जटाओं में भरकर धरती पर निर्मल धारा के रूप में प्रवाहित करते हैं। मानसरोवर पहाड़ों से घिरी झील है, जो पुराणों में क्षीर सागर के नाम से वर्णित है। क्षीर सागर कैलास से 40 किमी. की दुरी पर है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यही क्षीर सागर ( मानसरोवर झील ) भगवान विष्णु का अस्थायी निवास है। माना जाता है कि महाराज मान्धाता ने मानसरोवर झील कि खोज की और कई वर्षों तक इसके किनारे तपस्या की थी, जो इन पर्वतों की तलहटी में है। बौद्ध धर्मावलंबियों का मानना है कि इसके केंद्र में एक वृक्ष है, जिसके फलों के चिकित्सकीय गुण सभी प्रकार के शारीरिक व मानसिक रोगों का उपचार करने में सक्षम हैं। कैलास पर्वत कि चार दिशाओं से चार नदियों का उद्धगम हुआ है, जिनमें ब्रहमपुत्र, सिंधु, सतलज व करनाली हैं। हिन्दू धर्म में आस्था रखने वाले लोग कैलास मानसरोवर को आदि काल से ही भगवान शिव का निवास स्थान मानते आ रहे हैं।

हिमाच्छादित कैलास

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चीन (तिब्बत) के सुदूर पश्चिम में पृथ्वी का एक उच्चतम पवित्र स्थल है हिमाच्छादित विराट हिम पिरामिड कैलास पर्वत। कैलास पर्वत के विषय में मान्यता है कि यह तीन करोड़ वर्ष पुराना है, जो कि हिमालय के उद्धभव काल से ही अपना विशिष्ट स्थान रखता है। यह स्थल हिन्दू, बौद्ध, जैन धर्मालंबियों कि आस्था का केंद्र है।
पवित्र कैलास-मानसरोवर यात्रा विदेश मंत्रालय भारत सरकार के दिशा-निर्देशन में कुमाऊं मंडल विकास निगम लिमिटेड वर्ष 1981 से लगातार संचालित कर रहा है। विदेश मंत्रालय द्वारा निर्धारित आवश्यक शर्तों को पूरा करने वाला कोई भी भारतीय नागरिक इस यात्रा में भाग लेने के लिए आवेदन कर सकता है। उम्र कि न्यूनतम सीमा 18 एवं अधिकतम 60 वर्ष नियत कि गई है। यह यात्रा पिथौरागढ़ के नारायण स्वामी आश्रम नामक स्थान से आगे कठिन पैदल मार्ग तथा समुद्र तल से 5100 मीटर की ऊंचाई पर स्थित लिपुलेख दर्रे से होकर गुजरती है। यात्रा प्रतिवर्ष जून से प्रारंभ होती है और सितंबर में समाप्त होती है। प्रतिवर्ष पंजीकृत यात्रियों की संख्या के आधार पर यात्री दल बनाए जाते हैं। प्रत्येक दल में अधिकतम यात्रियों की संख्या 60 तक हो सकती है।

मानसरोवर की परिक्रमा
दिल्ली से लिपुलेख दर्रे तक ( भारतीय क्षेत्र में ) कुल यात्रा 717 किलोमीटर की है, जिसमें से दिल्ली से नारायण स्वामी आश्रम तक 635 किमी. की यात्रा मोटर मार्ग से होती है। धारचूला से नाराणय स्वामी आश्रम तक छोटे वाहनों से यात्रियों को पहुंचाया जाता है। इसके बाद लिपुलेख दर्रे तक कुल 82 किमी. की यात्रा भारतीय क्षेत्र में पैदल की जाती है। इसके अलावा, तिब्बत क्षेत्र में यात्रियों को लगभग 50 किमी. पैदल था 193 किमी. वाहन से यात्रा करनी पड़ती है, जिसमें कैलास मानसरोवर की परिक्रमा भी शामिल है।

तीर्थ यात्रियों के लिए सुविधाएं
यात्रियों के लिए दिल्ली से लिपुलेख दर्रे तथा वापसी में इस दर्रे के लेकर दिल्ली तक परिवहन, भोजन आदि की व्यवस्था कुमाऊं मंडल विकास निगम द्वारा की जाती है। आवास की व्यवस्था निगम के पर्यटक आवास गृहों में की जाती है। निगम यात्रा अवधि के दौरान प्रति यात्री की पांच लाख रुपये का व्यक्तिगत जोखिम बिमा भी करता है।
यात्रा की सुरक्षा के लिए नारायण स्वामी आश्रम के आगे स्थानीय पुलिस, आइटीबीपी सुरक्षा प्रदान करती है। प्रत्येक दल के साथ एक चिकित्सक, फॉर्मासिस्ट व पुलिस दल रहता है। साथ ही, संचार व्यवस्था के लिए स्थानीय प्रशासन की ओर से गुंजी तक प्रत्येक शिविर में वायरलेस सेट की सुविधा उपलब्ध कराई जाती है।

पिथौरागढ़ से पैदल यात्रा

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कैलास मानसरोवर यात्रा के लिए पंजीकरण आवश्यक होता है। पंजीकरण अप्रैल से मई तक ऑनलाइन हो चुके हैं। यात्री दिल्ली से नैनीताल जिले के काठगोदाम पहुंचते हैं। यहां से अल्मोड़ा, डीडीहाट होते हुए धारचूला तक वे बस से यात्रा करते हैं। इसके बाद पिथौरागढ़ के नारायण स्वामी आश्रम से पैदल यात्रा का शुभारंभ होता हैं।

यता संबंधी मुख्य तथ्य
यात्रा प्रारंभ तिथि: 12 जून, 17
समाप्ति तिथि: 9 सितंबर, 17
यात्रा के जाने वाले दलों की संख्या: 18
प्रतिदल अधिकतम यतियों की संख्या: 60
एक दल की यात्रा अवधि: 22 दिन
भारतीय क्षेत्र में यात्रा: 14 दिन
चीन क्षेत्र में यात्रा: 8 दिन

केएमवीएन द्वारा मिलने वाली सुविधाएं:
परिवहन, आवास, भोजन, संचार सुविधा एवं प्रति यात्री पांगु यात्री से 25 किलोमीटर सामान का लिपुलेख दर्रे तक ढुलान

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