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मध्य प्रदेश में यूं तो तमाम खूबसूरत स्थल हैं, पर एक खूबसूरत धार्मिक नगरी है- मैहर। यह सतना जिले में है। जहां की खासियत देवी शरद मां की शक्तिपीठ है, जो देशभर में मशहूर है…
मध्य प्रदेश का स्तन इलाका अपनी प्राकृतिक खूबसूरती और पहाड़ियों के लिए प्रसिद्ध है। यहां कैमूर और विंध्य की ऊंची-ऊंची पर्वत क्षेणियों है। पहाड़ियों के बीच बल खाते हुए तमस नदी बहती है। हरी-भरी इन्हीं पर्वत मालाओं के बीच मां शारदा का ऐतिहासिक मंदिर स्थित है। यह 108 शक्ति पीठों में एक है। यह पीठ सतयुग के प्रमुख अवतार नरसिंह भगवान के नाम पर नरसिंह पीठ के नाम से भी विख्यात है। कहा जाता है कि बुंदेलखंड के दो वीर नायक भाई आल्हा और ऊदल आज भी भोर में मंदिर में देवी के दर्शन के लिए आते है, तभी जब रोज सुबह मंदिर के पट खोले जाते हैं तो वहां शरद मां के चरणों में ताजे चढे हुए फूल नजर आते हैं। इस रहस्य के पीछे आल्हा का अमर होना माना जाता है, जिन्हें मां शारदा ने अमर होने का वरदान दिया था। बहुत से लोगों ने इस रहस्य की तह तक जाने का भी प्रयास किया, लेकिन कोई सफलता मिल नहीं पाई। इस मंदिर में रात ने कोई भी रुक नहीं सकता। व्रन्दावन के निधि वन की तरह यहां भी मान्यता है कि यहां रात में रुकने वाले जिन्दा नहीं बचते। मंदिर कि सीढ़ियां चढ़ने से पहले आल्हा की मूर्ति के दर्शन होते है, जो भाला लिए हाथी पर सवार हैं।
600 फीट की ऊंचाई पर मंदिर
एक ज़माने में तो 600 फीट की ऊंचाई पर स्थित मंदिर तक पहुंचना आसान नहीं था। तब न तो ऊपर जाने वाली सड़कें थीं और न ही आसान सीढ़ियां। लोगों को करीब 500 बड़ी सीढ़ियां चढ़कर मंदिर तक जाना होता था। लोग तब भी जाते थे और कई घण्टे बाद ऊपर तक पहुंचते थे। अब आसानी यह है कि काफी ऊपर तक न केवल सड़क बन गई है, बल्कि सीढ़ियों को भी आसान कर दिया है, क्योंकि अब 500 सीढ़ियों कि जगह 1063 कई आसपास कि आसान सीढ़ियों ने ले ली है। उड़नखटोले यानी रोपवे भी भी सुविधा शुरू हो गई है। सीढ़ियों पर रेलिंग और छाया कि भी व्यवस्था है। कहते है मां हमेशा ऊंचे स्थानों पर विराजमान होती हैं। उतर में जैसे लोग मां दुर्गा कई दर्शन कई लिए पहाड़ों को पार करते हुए वैष्णो देवी तक पहुंचते है, ठीक उसी तरह मध्य प्रदेश के मैहर में भी है। इस मंदिर को महर देवी का मंदिर कहने के पीछे एक मतलब यह भी बताया जाता है- मैहर यानी मां का हार।
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Alha Udal ka Talab |
आल्हा-उदल कि छाप
मंदिर पर जब पहुंचते है, तो पहाड़ों के शिखर पर होते हैं यहां से पुरे शहर का नजारा लेना अदभुत होता है। चारों ओर हरियाली ओर छोटा-सा शहर नजर आता है, जो काफी सुंदर लगता है। इस पुरे इलाके पर हजारों साल बाद आज भी आल्हा-उदल की छाप है। यहां आल्हा गाने का रिवाज है। उसे गाने वाली टोलियां है-जिसमें उनकी वीरता का वर्णन होता है। उनकी किवदन्तियां मशहूर हैं। यह सवाल सबकी जुबान पर होता है कि मंदिर में सुबह कौन फूल चढ़ा जाता है। इस इलाके में आल्हा ऊदल के अवशेष है, जिनका अपना ऐतिहासिक महत्व है। मैहर के प्रसिद्ध शारदा मंदिर के पास ही आल्हादेव मंदिर, आल्हा का तालाब एवं आल्हा का अखाडा है। हालांकि समय के साथ उन पर समय की मार दिखती है। उनका रखरखाव भी नहीं होता। आल्हा मंदिर शारदा मंदिर की पहाड़ी त्रिकुट की पिछली दिशा में है। चारों तरफ हरीतिमा फैली हुई है। मंदिर सामान्य-सा है। अंदर आल्हादेव की मूर्ति स्थापित है। निकट ही दो विशाल वास्तविक खड़ाऊं है, जिसके बारे में मान्यता है कि आल्हा इन्हें पहना करते थे। मंदिर के पीछे के भाग में एक बड़ा सरोवर है। इसमें आल्हा नहाया करते थे। वैसे, प्रदूषण के इस युग में यह तालाब स्वच्छ है और आंखों को अच्छा लगता है। कुछ दूर आल्हा का अखाडा है, जहां वे मल्लयुद्ध का अभ्यास किया करते थे। हालांकि अखाडा कोई विशेष बड़ा नहीं है, हो सकता है कभी यह बड़ा रहा हो। इस धार्मिक नगरी में कई और मंदिर भी हैं। इनमें मैहर में बड़ी माई का मंदिर भी है, जिन्हें शारदा देवी की बड़ी बहन कहा जाता है।
मैहर का इतिहास
मैहर पूर्व में मैहर रियासत की राजधानी थी। इसे 1778 में कुशवाहा कबीले के राजपूतों द्वारा स्थापित किया गया। बाद में इसे बुंदेलखंड में मिला दिया गया। देश में जितने प्रसिद्ध संगीत धराने फल-फुले, उनमें एक मैहर में भी था, जिसे आज भी हिंदुस्तानी संगीत का मैहर डरना कहा जाता है। भारतीय शास्त्रीय संगीत के उस्ताद अलाउदीन खान लंबे समय तक यहीं रहे। विश्व प्रसिद्ध संगीतकार और गायक यहां से पंडित रविशंकर यहीं की देन हैं। और न जाने कितने ही प्रसिद्ध संगीतकार और गायक यहां से निकले। संगीत की ध्रुपदशैली का जन्म इसी घराने में हुआ। पंडित रविशंकर ने यहीं रहकर उस्ताद अलाउदीन खान से सितार सीखा। उनका पहला विवाह उस्ताद की पुत्री अन्नपूर्णा से हुआ था, जो स्वयं महान गायिका हैं। बाद में दोनों में संबन्ध विच्छेद हो गया। मैहर अच्छी तरह से आवागमन के माध्यमों से जुड़ा हुआ है। रेल मार्ग और सड़क मार्ग से तो यह बेहतर तरीके से जुड़ा है। यह पश्चिम लवे के कटनी और स्तन स्टेशनों के बीच स्थित है। दिल्ली से यहां सीधी ट्रेन की सुविधा है। निकटतम हवाई अड्डा जबलपुर और रीवा हैं।