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Sikkim |
सुदूर उत्तर पूर्व का यह राज्य अपने सौंदर्य ही नहीं, स्वच्छता के संस्कार और नागरिक जागरूकता के लिए भी आकर्षित करता है। महात्मा गांधी रोड पर लगी गांधी जी की बड़ी-सी प्रतिमा जैसे हर आने-जाने वाले को इन घुमावदार रास्तों को स्वच्छ बनाए रखने के संस्कार सौंप रही है…
एक व्यस्त सड़क पर सैकड़ों गाड़ियां आ-जा रही हैं। तभी सिग्नल लाल होता है और हर गाड़ी बिल्कुल एक के पीछे एक खड़ी हो जाए, बिना हॉर्न बजाए तो इसे देख कर कौन अभिभूत नहीं होगा? जी हां, यह है सिक्किम की राजधानी गंगटोक। धूल-धुंए रहित, बिना शोर-शराबे का एक शांत पहाड़ी शहर। सिक्किम के चार जिलों में से गंगटोक पूर्वी जिला है। माल रोड यानी एमजी रोड पर महात्मा गांधी की बड़ी-से प्रतिमा है। इस रोड के दोनों तरफ सुसज्जित दुकानें और कई नई-पुरानी जगमगाती इमारतें हैं। बीच में डिवाइडर पर हरियाली में बैठने के लिए बेंच और हर 50 मीटर पर डस्टबिन रखे दीखते हैं। माल रोड पर दो वेज रेस्टोरेंट हैं, जो शाकाहारी लोगों के लिए बड़ी राहत हैं। एमजी रोड के लगभग आखिर में थोड़ा नीचे उतरकर लाल बाजार है। जगह की कमी के बावजूद दुकानें और उनके आगे के फुटपाथ सामानों से भरे दीखते हैं।
जागरूक नागरिक
गंगटोक में एक दिन के स्थानीय टूर में सात या ग्यारह प्वाइंट घुमाए जाते हैं। इनमें व्यू प्वाइंट गणेश टोंक मंदिर और कुछ वाटरफॉल हैं। एमजी रोड के आसपास होटल काफी महंगे हैं पर जैसे-जैसे शहर के दूर होते जाएंगे, कम किराए में भी ठहरने की अच्छी जगह मिल जाएगी। टेक्सी का किराया हालांकि थोड़ा महंगा लगता है, पर जिस तरह की चढाई और घुमावदार सड़कों पर वह चलती है, उतना पैदल चलना भी आसान नहीं है। नाथुला के पास भारत-चीन बॉर्डर है। यह गंगटोक से 80 किमी. दूर लगभग 14740 फ़ीट की ऊंचाई पर है। नाथुला पास जाने के लिए पहले परमिट बनवान पड़ता है। इसके लिए बुकिंग के साथ ही दो फोटो और पहचान-पत्र की एक कॉपी देनी होती है।
शहर सीमा पार करते ही गाड़ी खुले पहाड़ी रास्ते पर बढ़ चलती है। एक ओर आसमान में फख से सर उठाये ऊंचे पहाड़, वो दूसरी ओर अपनी विनम्रता की मिसाल देती गहरी खाइयां। ऊंचाई से जिरते पहाड़ी झरने अपनी ओर ललचाते हैं। जैसे-जैसे ऊपर बढ़ते हैं, पानी की बोतल ओर खाने-पीने का सामान महंगा होता जाता है। सड़क किनारे जो झरने बहुत पास दिखते हैं, उन तक पहुंचना आसान नहीं है। पुरे सिक्किम में पेड़ टॉयलेट हर जगह हैं। यात्रा के पहला पड़ाव था छंगू लेक ( झील ) ओ 14310 फ़ीट की ऊंचाई पर है। पहाड़ों से घिरी एक प्राकृतिक झील को जगह देने के लिए यहां पहाड़ों पर वनस्पति कम होने लगी थी। झील में मछलियां हैं पर 51 फ़ीट गहरी यह झील सर्दियों में पूरी तरह जम जाती है। यहां सजे-धजे याक लिए स्थानीय निवासी याक पर फोटो खींचवाने का आग्रह करते हैं। आगे ऊपर बढ़ते हुए बार-बार झील दिखती है। साफ-सुथरे स्थिर पानी पर पहाड़ों का प्रतिबिंब मन मोह लेता है। पचास साथ फ़ीट ऊपर से भी उथली सतह के पत्थर दिखते हैं। तब अनछुई प्रकृति की सुंदरता गहराई से महसूस होती है।
दो देशों का बार्डर
नाथुला पास करीब आ रहा था। ठंड बढ़ने लगी थी। गाड़ी में भी हाथ में मोबाइल और कैमरे की अनुमति नहीं थी। यह इलाका चीनी निगरानी क्षेत्र में आता है, इसलिए यह सावधानी जरूरी है। पार्किंग से लगभग ढाई-तीन सौ फ़ीट चल कर बार्डर है। यहां ठंड बहुत बढ़ जाती है और हवा में ऑक्सीजन की कमी महसूस होने लगती है। हमें अधिकतम एक घण्टे ही रुकने की अनुमति थी, वरना तबियत खराब होने का डर था। कई महिलाएं और बच्चे हांफ रहे थे। जहां दोनों देशों के दरवाजे हैं, उनके बीच महज पंद्रह-बीस फ़ीट की दुरी है। इसे देखने के लिए खुली टैरेस जैसी जगह है। टैरेस पर दीवार ऐसी है जैसे वो छतों के बीच दीवार होती है। दो जवान दुश्मन देश पर नजर रखे थे, तो पांच-छह जवान भारतीय पर्यटकों पर नजर रखे थे। चाइना बॉर्डर पर ख़ामोशी छाई थी। उस तरफ कभी-कभी ही पर्यटक आते हैं। इस तरफ पर्यटकों की सुविधा के लिए सेना ने मेडिकल हेल्प और केंटीन के दो टेंट बनाए हुए हैं। कैंटीन में गर्मागर्म कॉफी, समोसे और मोमोज का आनंद लिया जा सकता है। इसके बाद अगला पड़ाव है बाबा मंदिर। बाबा हरभजन सेना में थे, जो रसद ले जाते हुए पहाड़ी झरने में भ गए थे और घटना स्थल से दो किमी. दूर उनका शव मिला था। कहते हैं उन्होंने अपने साथियों को सपने में दर्शन देकर अपने शव की स्थित बताई थी। सेना ही मंदिर की व्यवस्था देखती है। यहां पास की पहाड़ी पर बड़ी-सी शिव प्रतिमा स्थापित है जिसके पीछे बड़ा-सा झरना है। पहाड़ों में जो जगहें पास दिखती हैं, वे पहुंचने में दूर होती हैं।
रंगीन बिल्लियों का इलाका
लाचेन और लाचुंग बेहद खूबसूरत अनछुआ जिला है। बिरल आबादी दूर-दूर बसे छोटे-छोटे गांव, ऊंचे पहाड़ों के बीच से गुजरते रास्ते, घने जंगल और ढेर सारे झरने। हर मोड़ के बाद एक झरना, कांच-सा स्वच्छ पानी और बस्तियों के पास के झरने के नीचे लगी पनचक्की, जिससे बिजली बनती है। जंगल में जानवर बहुत कम है। सांप नहीं है, लेकिन बिल्लियां बहुत हैं। सड़कों के किनारे भूरी, सफेद, काली, पिली बिल्लियां दिख जाती हैं।
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तीस्ता की लहरें
लाचुंग से आगे युकसम में काफी दुकान हैं, जहां बूट्स, दस्ताने किराए पर मिल जाते हैं। पैकेज दूर में शामिल चाय-नाश्ते के लिए हर गाड़ी की दुकान तय है। रास्ते से नीचे तीस्ता नदी बहती है। जैसे-जैसे ऊपर की और बढ़ते जाते है, वनस्पति बदलती जाती है और फिर चारों तरफ सिर्फ क्रिसमस ट्री नजर आते हैं। यह क्षेत्र भारत-तिब्बत पुलिस की निगरानी में है। जीरो प्वाइंट से आगे भी चाइना बॉर्डर है, पर उसे काफी पहले ही लोगों को रोक दिया जाता है। एक मोड़ लेते ही बर्फ से ढके पहाड़ दिखने लगते हैं। रात में गिरी धवल बर्फ सूरज की रौशनी के साथ एक अलौकिक नजारा पेश करती है। इसी के आगे तीस्ता नदी का उदगम है। इसलिए यहां तीस्ता नदी छोटी पहाड़ी नदी जैसी थी, लेकिन उसके प्रवाह के तेवर सचेत कर रहे थे। एक कच्चा पुल पर कर हम बर्फ पर पहुंच गए। साल भर बनी रहने वाली नमी के कारण जमीन मॉस ( एक प्रकार की वनस्पति ) से ढकी रहती है, जिसके कारण कीचड़ नहीं होता और इतनी आवाजाही के बावजूद भी बर्फ गंदी नहीं होती। जैसे-जैसे बर्फ पर ऊपर चढ़ते जाते हैं, ठंडी हवा तीखी होती जाती है और आवाज की लहरें भी ज्यादा सुनाई देने लगती हैं।
जहां मन अटका रह जाता है
दूसरे दिन ही रात तक लाचेन पहुंच जाते हैं। गुरुडोंगमार झील यहां का आकर्षण है, जहां पहुंचने के लिए डेढ़ सौ किमी. का सफर तय करना पड़ता है, जो रात को तीन बजे शुरू होता है और दिन में ग्यारा-बारह बजे तक वापसी। कड़ाके की सर्दी में रात का यह सफर कठिन जरूर हैं, पर जब मंजिल पर पहुंचते हैं तो पहाड़ों के ऊपर नीले आसमान के प्रतिबिंब को समाहित किए इस अनूठे नजारे को देखकर यात्रा का कष्ट छूमंतर हो जाता है। सुबह-सुबह गांव लगभग खाली और शांत होता है। यहां किसी भी सड़क पर पैदल टहलना और मॉनेस्ट्री में शांति से बैठना एक अद्भुत अनुभव है।
नार्थ सिक्किम से वापसी एक उदासी से भर देती है। आप खुद तो लौट आते है, पर आपका मन वहीं किसी झरने की फुहारों में भीगता किसी पहाड़ की चोटी पर पटका या किसी सड़क के मोड़ पर आपके फिर आने का इंतजार करता वहीं रह जाता है।
कैसे पहुंचें
करीबी एयरपोर्ट बगडोगरा अथवा रेलवे स्टेशन न्यू जलपाईगुड़ी से प्राइवेट या शेयर्ड टैक्सी से गोंग्टोक पहुचें। न्यू जलपाईगुड़ी से यहां की दुरी करीब 120 किमी. है। यहां से लगभग चार घण्टे का रास्ता है।
खास बातें
पानी पीते रहें। नाश्ते में सतू, पॉपकॉर्न आदि हल्का भोजन लें। गर्म कपड़े, टोपा, मफलर और दस्ताने हमेशा साथ रखें। कपड़ों की कई लेयर पहनें। पहाड़ों पर रुकने, वनस्पति छूने, फूल तोड़ने के पहले ड्राइवर या स्थानीय लोगों से जानकारी जरूर लें, क्योंकि ये जहरीली या खतरनाक हो सकती हैं। मोनेस्ट्री, चर्च, मंदिर में शांति बनाए रखें।