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chausath yogini temple |
मध्य प्रदेश का मुरैना धार्मिक पर्यटन के लिए लोकप्रिय गंतव्य है। खासकर संसद भवन की तरह दिखने वाला चौंसठ योगिनी मंदिर…
भारत के पर्यटन मानचित्र को देखें तो मध्य प्रदेश के मुरैना का जिक्र शायद ही मिले, लेकिन इतिहास और धर्म में आस्था रखने वाले लोगों के लिए मुरैना में देखने के लिए बहुत कुछ है। मुरैना के पड़ावली और मितावली मंदिर इतिहास के साथ-साथ आस्था के भी केंद्र हैं। मुरैना शहर से लगभग 25 किलोमीटर दूर इन मंदिरों तक पहुंचने के लिए हालांकि सार्वजनिक परिवहन की व्यवस्था लगभग नहीं है, उसके बावजूद बड़ी संख्या में लोग दूर-दूर से यहां पहुंचते हैं। पड़ावली के मंदिरों को बटेशवर मंदिर समूह भी कहा जाता है। ये मंदिर आठवीं शताब्दी में परिहार शासकों ने बनवाए थे, लेकिन कालातंर में या तो किसी ने इन्हें नष्ट दिया या फिर स्वत: ही समय के साथ गिरते चले गए।
चंबल की घाटियों में स्थित इन मंदिरों तक आम लोगों की पहुंच इन स्थानों पर डकैतों की उपस्थिति के कारण कम होती चली गई, लेकिन फिर भारतीय सर्वक्षण विभाग के अधिकारी डॉ. केके, मुहम्मद ने इनका पुनरुद्वार कर इन्हें फिर से जीवंत कर दिया। डॉ. केके. मुहम्मद ने लगभग 200 मंदिर खोज निकले और उनमें से अब तक करीब 80 मंदिरों का बेहतरीन तरिके से पुनर्निर्माण करा चुके हैं। इन मंदिरों में से अधिकांश मंदिर भगवान शिव को समर्पित हैं, जबकि कुछ मंदिर भगवान विष्णु को। पंक्तिबद्ध तरीके से बनाए गए इन मंदिरों में अलग-अलग प्रकार के शिखर लगाकर इन्हें पुराना रूप देने की पूरी कोशिश की गई और हर मंदिर को खुदाई में मिली आकर्षक कलाकृतियों से शोभायमान किया गया है। मंदिर श्रृंखलाओं के मध्य दो कुंड भी बनाए गए हैं, जो इस जगह को और भी खूबसूरत रंग प्रदान करते हैं।
चौंसठ योगिनी मंदिर
पड़ावली मंदिर समूह से लगभग छह किलोमीटर दूर मितावली गांव में स्थित चौंसठ योगिनी मंदिर अपने स्थापत्य के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर की बाहरी संरचना संसद भवन जैसी है। जब इस मंदिर को थोड़ा दूर से देखते हैं, तो एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित यह मंदिर ऐसा लगता है, जैसे-संसद भवन को दिल्ली से लाकर यहां बना दिया गया हो। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए लगभग सौ सीढ़ियां चढ़कर जाना होता है। इसकी बाहरी दीवारों पर विभिन्न कलाकृतियों वाले पत्थर लगाए गए हैं, और अंदर इसके मध्य में एक और मंदिर है, जो भगवान शिव को समर्पित है। संपूर्ण रूप से गोलाकार आकृति में बने इस मंदिर के चारों तरफ छोटे-छोटे चौंसठ कक्ष बनाए गए हैं, जिनमें पहले शिवलिंग के साथ देवी योगिनी की मूर्ति विराजमान भी, लेकिन कुछ मूर्तियों के चोरी हो जाने के बाद वहां से सभी मूर्तियों को हटाकर भारत के विभिन्न संग्रहालयों में भेज दिया गया है।
अध्ययन का केंद्र
इतिहास के जानकारों के अनुसार, चौंसठ योगिनी मंदिर का निर्माण कच्छपघात राजा देवपाल ने विक्रम संवत 1383 में कराया था और उस समय में यह मंदिर सूर्य की गति पर आधारित ज्योतिष और गणित के अध्ययन का बड़ा केंद्र था। प्राचीन समय में इस मंदिर को तांत्रिक विश्वविद्यालय कहा जाता थाविश्वविद्यालय इस मंदिर को एकतरसों महादेव मंदिर भी कहा जाता है। भारत में तीन और जगह पर योगिनी मंदिर हैं, जिनमें, ओडिशा में हैं। सामान्यत: योगाभ्यास करने वाली स्त्री योगिनी कहलाती हैं, परंतु शाक्त मत तथा तांत्रिक परंपराओं में योगिनी देविरूपा हैं, जिनकी कुल संख्या चौंसठ है। दरअसल, ये सभी आदिशक्ति मां काली का वे अवतार हैं जो घोर नाम के दैत्य के साथ युद्ध करते हुए माता ने लिए थे।
कब जाएं: मुरैना जाने के लिए ऐसे कोई विशेष समय नहीं हैं, लेकिन फिर भी मई और जून की तपती गर्मी को छोड़कर कभी भी जाना बेहतर है।
कैसे जाएं: मुरैना, दिल्ली-मुंबई सहित मुख्य शहरों से भारतीय रेलवे नेटवर्क से जुड़ा है। नजदीकी हवाई अड्डा मुरैना से ४० किलोमीटर दूर ग्वालियर में है।